एमसी छाबड़ा
 आमिर खान के कार्यक्रम सत्यमेव जयते से देश को यह तो पता चल गया कि किस तरह पंजाब के नवांशहर में प्रशासन और लोगों के आपसी सहयोग से लिंगानुपात बराबर हुआ। एक समय ऐसा भी था, जब यहां प्रति हजार लड़कों पर महज 764 लड़कियां थीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कन्या भू्रण हत्या जैसे घिनौने अपराध से मुक्ति प्राप्त करने के लिए नवांशहर हमारे लिए एक आदर्श और रास्ता दोनों सुझाता है। पंजाब में और भी कई गांव हैं, जो इतना अच्छा सामाजिक कार्य कर रहे हैं कि देश उन्हें मील का पत्थर मानकर अनुसरण कर सकता है। यहां ऐसे ही दो गांवों को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। क्या आपने किसी गांव में हाई कोर्ट के बारे में सुना है? मुकदमों में बढ़ते खर्च और न्याय की धीमी प्रक्रिया को मद्देनजर रखते हुए भटिंडा में फुला गांव के निवासियों ने अपना हाईकोर्ट स्थापित किया है, जिसमें 35 जूरी सदस्य हैं। यह अदालत अब तक 250 से अधिक मुकदमों का निपटारा कर चुकी है जिनमें से अधिकतर भूमि विवाद से संबंधित थे। लाल परी से पंजाब का पूरा देहात परिचित है। वर्ष 2010-11 में पंजाब की 2.75 करोड़ जनसंख्या ने लगभग 29 करोड़ बोतल शराब का सेवन किया। खपत के हिसाब से देश में यह सबसे ज्यादा थी। जाहिर है, शराब से राज्य को इतनी आय होती है कि वह इससे उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान नहीं देता। इसलिए जब भी ग्राम पंचायतों ने अपने क्षेत्रों से शराब के ठेके हटाने की मांग की तो आबकारी विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, लेकिन पंजाब में कुछ गांव ऐसे हैं जिन्होंने शराब के सेवन पर अपनी तरफ से प्रतिबंध लगाया हुआ है। पंजाब में कंझली शायद पहला ऐसा गांव है, जिसने शराब ठेके के लिए भूमि आवंटन पर प्रतिबंध लगाया है और जो भी इसका उल्लंघन करेगा, उस पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। कंझली की सरपंच राजेंद्र कौर कहती हैं, गांव के पुरुष अपनी दिनभर की कमाई का अधिकतर हिस्सा शराब पीने पर खर्च कर देते थे और नशे में झगड़ा करते रहते थे। इसलिए महिलाओं ने यह तय किया कि शराब के ठेकों को बंद किया जाए। पंजाब में लगभग 12 हजार गांव हैं, जिनमें से 72 ग्राम पंचायतों ने शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। आंकड़ों से तो यह प्रयास छोटा प्रतीत होता है, लेकिन जिस प्रदेश में एक व्यक्ति पर 10 बोतलों की खपत का औसत आता हो, वहां यह प्रयास सराहनीय लगता है। अगर महिलाओं और बच्चों को न गिना जाए तो पंजाब में प्रति व्यक्ति 20 बोतल शराब की खपत का औसत आता है। समाज सुधार के इन कार्यक्रमों में जहां ग्रामीणों की भागीदारी महत्वपूर्ण रही है, वहीं कुछ गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पंजाब में देसी शराब, जिसे लाल परी का नाम दिया जाता है, की दीवानगी जरूरत से ज्यादा है। वर्ष 2009 में पीपुल फॉर ट्रांसपेरेंसी और साइंटिफिक अवेयरनेस फोरम नामक दो समाजसेवी संगठनों ने पंजाब के ग्रामीणों को ज्यादा शराब पीने के नुकसानों के बारे में बताना आरंभ किया। फिर एक दिन संगरूर गांव के लोगों ने तय किया कि बहुत हो चुका और शराब पर पाबंदी लगाई जाए। उन्होंने आबकारी विभाग को मजबूर किया कि कुछ गांवों में शराब के ठेके बंद किए जाएं। उस समय तक ऐसा कोई किस्सा सुना नहीं गया था। यह सफलता गैर-सरकारी संगठनों के अलावा महिलाओं के कारण संभव हो सकी। वह शराब के विरोध में सड़कों पर उतरीं। यहां यह बताना आवश्यक है कि पंजाब में पंचायती राज अधिनियम के तहत ग्राम पंचायतों को यह अधिकार है कि वह अपने क्षेत्रों में शराब के ठेकों के खुलने पर रोक लगा सकें, लेकिन जब पहले साल ग्राम पंचायतों ने ठेके बंद कराने के प्रस्ताव पारित किए तो आबकारी विभाग कोई न कोई बहाना बनाकर प्रस्ताव को ठुकराता रहा। ग्रामीणों ने अपनी कोशिशें जारी रखीं, जिसके नतीजे में वर्ष 2010-11 में अनेक गांवों से शराब ठेके हटा दिए गए। इस उपलब्धि पर आमिर खान की नजर पड़ी और उन्होंने सत्यमेव जयते में छांगल गांव की मिसाल पेश की। इस गांव में पिछले दो साल से शराब का कोई ठेका खोलने नहीं दिया गया। छांगल के सरपंच परमजीत सिंह का कहना है हमारे प्रयासों से अन्य ग्राम पंचायतें भी शराब के अत्यधिक सेवन के विरुद्ध खड़ी हुई। मुझे खुशी है कि हमारे प्रयास को देश के महानतम अभिनेता आमिर खान ने भी सराहा है। इससे जाहिर है कि अगर लोग एकजुट होकर कोशिश करें तो बिना प्रशासनिक मदद के भी नशे की लत से छुटकारा पाया जा सकता है। रिकॉर्ड के लिए यह जान लें कि पंजाब के जिन 72 गांवों में शराब के ठेके हटा दिए गए हैं, उनमें से 47 संगरूर में हैं। गांवों में मुकदमेबाजी भी एक ऐसा रोग है जिससे खानदान के खानदान बर्बाद हो जाते हैं। जमीन का छोटा सा विवाद अदालतों में वर्षो तक लंबित रहता है, जिससे ग्रामीणों की समय व पैसे की बर्बादी होती रहती है और वकीलों की तिजोरियंा भरती हैं। इस खराब प्रथा पर विराम लगाने के लिए फुला गांव के लोगों ने पिछले 3 माह के दौरान 250 से अधिक विवादों का निपटारा अपनी जूरी के जरिए किया है। यह विवाद कई वर्षो से चले आ रहे थे। फुला में जो अदालत बनाई गई है उसमें हत्या के मामले को छोड़कर सभी विवादों का निपटारा किया जाता है। फुला के ग्रामीणों का कहना है कि लोगों को पुलिस व अदालतों में उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता था जिससे पहला नुकसान न्याय को ही होता था। लिहाजा मुकदमों को निपटाने के लिए जूरी का गठन किया गया जिसमें पूर्व सेना, पुलिस अधिकारियों के अतिरिक्त स्थानीय पंचायत के सदस्य होते हैं। ये सब उसी गांव के होते हैं और मुफ्त में अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं। अदालत ने एक ऐसी व्यवस्था स्थापित की है जिसके तहत गहन जंाच की जाती है ताकि फैसला न केवल न्याय पर आधारित हो, बल्कि सभी को स्वीकार्य हो। दोनों पार्टियों की स्वीकृति लेने के बाद ही फैसला दिया जाता है। जब से खुला गांव में जूरी का गठन हुआ है तब से पुलिस के पास कम शिकायतें जा रही हैं और ग्रामीण भी इस व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट हैं। हालांकि यह बहस की जा सकती है कि यह ग्रामीणजन कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं और ऐसे फैसले सुना रहे हैं, जिनको मानने या लागू करने के लिए सामाजिक दबाव केअतिरिक्त कोई अन्य चीज मौजूद नहीं है। परंतु इन प्रयासों का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि ग्रामीणों में जिस सहयोग की भावना उत्पन्न हो रही है, वह आपसी सहयोग से अपने विवाद निपटा रहे हैं। जाहिर है, इस प्रकार वह अदालतों के चक्कर काटने से बच रहे हैं और उनके बीच की दुश्मनी भी कम हो रही है। निश्चित रूप से अपने नए सकारात्मक प्रयासों से पंजाब के गांव अन्य राज्यों के लिए अच्छी मिसाल स्थापित कर रहे हैं। पंजाब के अनुभव से सीखकर अन्य गांवों में भी रामराज्य स्थापित किया जा सकता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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