भिखारी ठाकुर के गाँव से लौटकर-----पुष्पराज




'नंदीग्राम की डायरी' जैसी मशहूर पुस्तक के लेखक पुष्पराज ने भोजपुरी ह्रदय सम्राट भिखारी ठाकुर के गाँव से लौटकर यह रिपोर्ताज लिखा. और क्या लिखा है साहब (जानकीपुल  से साभार )
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आदरणीय भिखारी ठाकुर जी, आपके गाँव कुतुबपुर से लौटकर वापस आये एक माह पूरे हो गये हैं। आपके गाँव से लौटकर आपके गाँव का वाकया लिखते हुए मेरे हाथ काँप रहे हैं। मैं पहली बार सत्य लिखते हुए भय महसूस कर रहा हूँ। आपके देश में अब शर्म महसूसने की परंपरा खत्म होती जा रही है। इज्जत स्त्री की खत्म होती है, पुरुष की नहीं। और, जिस मुल्क में बलात्कारियों को बेशर्म होकर जीने का अभ्यास कराया जाता हो, उस मुल्क में भला अपनी चूकों के लिए शर्माने की क्या गरज? महीने बाद आपके गाँव की कथा लिखते हुए मुझे शर्म नहीं आ रही है, तो कृपा कर आप मुझे माफ कर देंगे।

आज आप 125 बरस के हो रहे हैं, यह जानकर 18 दिसंबर को मैं आपके गाँव गया था। आपके गाँव आने-जाने से हम सफेदपोशों को इज्जत मिलती है। हम शान महसूसते हैं और अकड़कर कहते हैंभिखारी ठाकुर के गाँव से लौटकर आये हैं। आपका देश अब समृद्ध हो गया है। आपके बारे में अब इंटरनेट और गूगल से लोगों को पता चल सकता है कि आपका जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के कुतुबपुर गाँव में हुआ था। आपको किन्हीं ने भोजपुरी का शेक्सपीयर क्या कह दिया, आपके गाँव आकर लोगबाग शेक्सपीयर के गाँव आने का गर्व महसूसते हैं। आपके प्रदेश बिहार में अब शेक्सपीयर के देश के बड़े साहबान लोग आने-जाने लगे हैं। अच्छा हो कि वे एक बार अपनी आँखों से तौल लें कि विलायती शेक्सपीयर के गाँव और भारतीय शेक्सपीयर के गाँव में केतना का बराबरी है। जिस भोजपुरिया जुबान को पाँव में बाँधकर आप सगर देश नाच करते रहे, उस भोजपुरिया भाषा में अब सनीमा बन रहा है। करोड़ों-करोड़ रुपया इन भोजपुरिया सनीमा से बरस रहा है। कामरेड संपादक दयाशंकर जी आपको शोषित मेहनतकशों के सिर पर मुकुट की तरह देख रहे हैं। “भोजपुरी संसार” के संपादक मनोज श्रीवास्तव भोजपुरिया सनीमा संसार के पुराने उस्ताद हैं। इन्हीं संपादकों के साथ होकर आपके गाँव पहुँचा। संपादक द्वै अपनी मादरे जुबान भोजपुरी की सबसे बड़ी शान मानकर अपने नाट्य सम्राट की धरती को नमन करने कुतुबपुर पहुँचे हैं। संपादक जी लोग आपस में बातें करते हुए आपकी तुलना शेक्सपीयर से करना अनुचित मानते हैं। शेक्सपीयर अंग्रेजी जुबान के नायक हैं। आप भोजपुरी, हिन्दी समाज के नायक हैं। आपने गरीबों के हक, प्रतिरोध और गर्वीली-गरीबी का नाटक किया है। शेक्सपीयर ने अमीरों की भाषा अंग्रेजी में नाटक रचे और साम्राज्यवादी भाषा को समृद्ध किया। साम्राज्यवाद की ताकत बनाम गरीबों के प्रतिरोध की संस्कृति की बहसों से गुजरते हुए हम आपके गाँव पहुँचे। इंटरनेट, फेसबुक पर आभासी दुनिया का अलग हिसाब-किताब चल रहा है। आभासी दुनिया में आपके नाम पर गोले दागे जा रहे हैं। क्या बिहार में नाट्य सम्राट भिखारी ठाकुर का 125वाँ वर्ष राजकीय सम्मान के साथ मनाया जा रहा है। क्या 18 दिसंबर को बिहार में भिखारी लोकोत्सव की तरह मनाया जा रहा है। आभासी दुनिया से बाहर होकर हमने कुतुबपुर को अपनी आँखों से देखा।

गोधूली वेला में बच्चों का हुजूम हमारी तरफ दौड़ रहा है। बच्चे सोचते हैं, काले शीशे के भीतर से ऐसे देवता अवतरित होंगे, जिन्हें इन्होंने पहले कभी नहीं देखा हो। ये तीसरी कसम के बच्चे हैं या मैला आंचल के। ये पाउडर से सने-पुते नृत्य नाटिका के लिए सुसज्जित बच्चे हैं या धूल से सने मटमैले बच्चे। ये लोहे के दौड़ते हुए डब्बे के पीछे ऐसे दौड़ते हैं, जैसे शावक के पीछे खरगोश। दौड़ती हुई गाड़ी रुक गयी तो इन्होंने मान लिया कि लोहे का डब्बा इंसान के बच्चों के सामने पछाड़ खा गया। गरीबों के बाल संसार में हास्य-विनोद इसी तरह धूल-धक्कड़गर्दो-गुबार के बीच पलते-बढ़ते, घिसते-मिटते रहते हैं।
पुष्पराज
मैं पहली बार आठ साल पहले आनंद बाजार के समाचार संपादक संजय शिकदर के साथ आपके गाँव रामनिवास की भटभटी नाव से पहुँचा था। अभी बाबुरा नदी के सूखे होने से नाव की बजाय कच्ची लीक से कुतुबपुर आये। आज आपके जन्म की 125वीं सालगिरह के निमित्त कुतुबपुर में उत्सवी माहौल है। आज मंगलकारी हाट-बाजार का सुयोग है तो आपके 125 बरस का जश्न ज्यादा फब रहा है। आपके गाँव इलाके में सरकारी बिजली कभी आयी नहीं। आज जो जगरमगर हम इधर देख रहे हैं, यह सब इराक के पानी की ताकत पर टिकी है। कुतुबपुर की आबादी अब तीन हजार से ज्यादा हो गयी है। कुतुबपुर का अस्तित्व अपने गोलार्ध के 12 गाँवों की आबादी के साथ खतरे के निशान के बहुत करीब डगर-मगर की स्थिति में फंसा है। तीन पंचायत की 50 हजार की आबादी दो दशक से भयाक्रांतता में जीने के लिए अभिशप्त है। आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सामाजिक न्याय के सरमायेदार वजीरे-आला-बिहार ने 1997 में जब छपरा में आपकी प्रतिमा का अनावरण कर भिखारी की परंपरा का वाहक-संवाहक होने का श्रेय लिया था। तब कुतुबपुर के पड़ोसी बड़हरा माहाजी पंचायत का अस्तित्व गंगा में समाप्त हो चुका था। आपकी प्रतिमा का अनावरण करते हुए सामाजिक न्याय के उस पहरूए ने अगर बड़हरा महाजी के 10 हजार नागरिकों के विस्थापन-पुनर्वास की सुध ली होती तो आप जरूर बुत से बाहर प्रकट होकर एक बार चिहुक लेते। बड़हरा माहाजी पंचायत के लोग दूर देश-परदेश तक कहाँ बिखड़ गये या उनका कहीं कोई अस्तित्व है या नहीं सब किसी ने जानने की कोशिश नहीं की है। सारण के जिलाधीश ने 2001 और 2003 से गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग, पटना को पत्र लिखकर कोटवांपट्टी रामपुर, रामपुर बिनगांवा और बड़हरा माहाजी के 12 गाँवों के अस्तित्व को गंगा में विलीन होने से बचाने का अनुरोध किया था। जाहिर है कि कुतुबपुर गंगा के कटाव के मुहाने पर 12 गाँवों के समूह का गाँव है, जो सोनभद्र, गंगा और सरयू नदी के संगम पर बसा है। बड़हरा माहाजी का अस्तित्व समाप्त होने के बाद आपके गाँव कुतुबपुर सहित 12 गाँवों के लोग अपनी जीवन रक्षा के लिए एकजुट संघर्ष कर रहे हैं। कोटवां दियारा विकास संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर माँग की है कि गंगा के कटाव से विस्थापन की भयाक्रांतता से त्रस्त 12 गाँवों को बचाने के लिए 5 कि॰मी॰ तटीय तटबंध की मंजूरी दी जाये।

गाँव इलाके के ललन राय सरीखे नेता टाईप लोग कह रहे है कि गंगा, सरयू और सोन के मिलन स्थल को संगम स्थल घोषित किया जाये और साधु-संतों का अखाड़ा बनाया जाये। पहले गाँवों को उजड़ने-बिखड़ने से बचा लिया जाये फिर गाँवों के लोग तय करें, यहाँ साधुओं का अखाड़ा बनाया   जाय या नेताओं का अखाड़ा। हमारे संपादक जी अचरज से बोलते रहे, जहाँ बिजली नहीं, वहाँ मोबाइल के दो-दो टावर खड़े हैं। अच्छी खबर है कि आपके ग्रामवासियों ने बिजली की रौशनी की चकाचौंध  से बचते हुए कर लो दुनिया मुट्ठी में का सपना साकार करने के लिए मोबाइल को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। आदरणीय भिखारी जी, जहाँ तक भारतीय लोकतंत्र की रौशनी नहीं पहुँचती है, वहाँ इराक के पानी की ताकत से जगरमगर पैदा किया जाये तो दृश्य कैसा होगा? आपके गाँव आकर हमरा दिमाग ज्यादा नरभसाने लगा है। हजारों-हजार बेकसूर गेंदा के फूलों से लदे भव्य मंच पर भोजपुरी मसाला फिल्मों के गानों की मादकता हमारी यौवनता को मात कर गयी है। कहा जा रहा है, मुंबई से भोजपुरी फिल्मों के नामी-गिरामी चेहरे इस ‘भिखारी धाम में भोजपुरी के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक प्रतीक भिखारी ठाकुर को नमन करने जुटे हैं। विनय बिहारी गा रहे हैं। रवि किशन मुंबई से फोन पर संदेशा सुना रहे हैं। कई भारी-भरकम चेहरे मौजूद हैं पर शोर इतना अधिक है कि नामी-गिरामी नाम हमारी कानों में प्रवेश करते बाहर कहीं छूट गये। रौशनी से गुलजार भिखारी धाम के मंच पर इत्र का स्प्रे बार-बार छिड़का जा रहा है। इतर से तर होकर हमने महसूस किया कि गरीबी-दरिद्रता की दुर्गंध खुशबू में बदल गयी है। नाट्य सम्राट, इस खुशबू से आपकी नाक फट रही हो तो मुझे माफ कर देंगे..!!

                                    किस्त-- 2

आदरणीय भिखारी ठाकुर जी, पिछली बार 8 साल पहले कुतुबपुर में जो कुछ दिखा था, आज दृश्य काफी कुछ बदला-बदला दिख रहा है। नेता, ठेकेदार और कारपोरेट सेक्टर के पाँव आपके गाँव में जमने लगे हैं तो मानिए कि विकास हो रहा है। सोन, गंगा और सरयू नदी से घिरा टापू गाँव कुतुबपुर अब विश्व मानचित्र से जुड़ेगा। कुतुबपुर तक पहुँचने के पहुँच पथ किस तरह निर्मित होकुतुबपुर तक पहुँचने के लिए रेलमार्ग किस तरह सुगम हो सकता है, यह सब आप तक पहुँचने वाले तय करेंगे। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह पिछले साल किसी सभा में आपके बारे में आधे घंटे भोजपुरी में संवाद करते रहे। जानेमाने रंगकर्मी पुंजप्रकाश पिछले साल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संगी-साथी रंगकर्मियों के साथ रातभर कुतुबपुर के अंधकार से युद्ध रचते रहे। कुतुबपुर का अंधकार आपको जानने वाले और आपका नाम लेकर गर्व महसूस करने वाले उस बड़े जन-समूह के हिस्से का अंधकार है, जो अंधकार को किसी भी लोकतांत्रिका-सभ्य समाज का कलंक मानते हैं।

रौनी से सराबोर अंधकार से हमने संवाद करने की कोशिश  की। आपको चाहने वालों को इतना जानकर अच्छा लगेगा कि आपके गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय है, जिसमें 500 बच्चे पढ़ते हैं। हाई स्कूल की षिक्षा के लिए गाँव के बच्चे नाव से चिरांव या बबुरा बाजार के हाई स्कूल में पढ़ने जाते हैं। गाँव में एक अतिरिक्त स्वास्थ्य उपकेन्द्र का भवन दिख रहा है। 2 साल पूर्व 50 लाख की लागत से निर्मित इस अस्पताल की छत चू रही है। 12 बेड के इस अस्पताल में डाक्टर, नर्स नियुक्त हैं या नहीं, किसी ने कभी देखा नहीं। एक कंपाउडर जी हैं, जो कभी-कभी अस्पताल का ताला खोल देते हैं। यहाँ इलाज या दवा की सुविधा कभी उपलब्ध नहीं हुई। बीमारों के इलाज की बजाय अस्पताल को इलाज की दरकार हो तो आप क्या कहेंगे? आपके गाँव के मुखिया जी कौन 
हैं ? 10 जने जो पास हैं, सब एक सुर से कह रहे हैं, शंकर के मेहरारू हैं। मुखिया पति को सब जान रहे हैंजनाना मुखिया का नाम जाने या अनजाने रहें तो क्या फर्क पड़ता है।

सोन नदी का बालू आपके इलाके के गरीब मेहनतकशों  का पेट भर रहा है। बावजूद गरीबों का पलायन जारी है। मजदूर गठरी बाँधकर रोज पूरब की तरफ भाग रहे हैं। स्त्रियाँ अभी भी सौहर के पीठ धरे रूदाली गा रही हैं- पिया गैलन परदेशिया गे सजनी। आपके पड़ोसी गाँव के युवा कलाकार मंगलमूर्ति ने बड़े शान-शौकत  से माटी की लुगदियों को मूरत रूप दिया है। मूरत तब सजीव हो जाती है, जब कलाकार मूरत के भीतर अपनी सूरत देखने लगता है। जिस माटी से आप बने थेउसी माटी से बने मूर्तिकार ने आपकी मुखाकृति से मुस्कुराहट बिखेड़कर हमें मुस्कुराने की अदा सिखलाई है। कला कभी मरती नहीं है। वह कई रूपों में अपना आकार बदलती रहती है। हम कला के मूलभूत सिद्धांत को अपनी पीढ़ी के साथ एकाकार होता देखकर आपकी अमरता से साक्षात्कार कर रहे हैं।

जिस माटी घर में आपका जन्म हुआ था और जिस संकरे माटी घर में आपने जिंदगी की अंतिम सांसें ली थी, वह माटी घर अब भी धरती पर साबूत खड़ा है। आपके पोते राजेन्द्र ठाकुर आपके परिवार की गरीबी और बदहाली का विलाप कर रहे हैं। मैंने आपका बहाना बताकर उन्हें रोने से मना किया है। आप अपनी गरीबी पर कभी नहीं रो पाये तो आपके वंज गरीबी को अभिशाप  क्यों मानेंआपके परपोते रवि ठाकुर बी.ए. में पढ़ रहे हैं। परपोती पूजा इंटर में पढ़ रही है। एक घर में चार चूल्हे जल रहे हैं। आपके पोते दिनकर ठाकुर की पाँव किस तरह कट गयी। किस तरह उनका नाच छूट गया। दिनकर ठाकुर की असमय मौत से उनका छौरा सुशील  टूअर हो गया है। सुशील  ठाकुर हिन्दी से एम.ए. कर रहे हैं पर पढ़ाई से ज्यादा नौकरी के लिए परेशान  हैं। आपके घर में राजेन्द्र ठाकुर के साथ हिन्दी के महान साहित्यकार नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय की तस्वीरें देखकर मन मुदित हो गया। मैंने आपके परपोते सुशील  से कहा है कि भिखारी ठाकुर का परपोता हिन्दी का षिक्षक बने तो हिन्दी जगत में आपके वंश  का नाम तो चलेगा।

एक बंधु ने कहा- आपको पद्मश्री क्यों नहीं मिला? आपके घर-परिवार के लोगों को बहुत कुछ नहीं मालूम कि आपके हिस्से क्या मिला, क्या नहीं मिला। राजेन्द्र ठाकुर अपनी कविता को गाकर सुना रहे हैं- केहु कहत बा राय बहादुर/ केहु कहत बा शेक्सपीयर/ केहु कहत बा कवि भिखारी/ घर कुतुबपुर दीयर/ नैखी ऐसन पद्वी जोग/ मलिक जी, मलिक जी कहत बा लोग। आपको पद्मश्री नहीं मिलने के सवाल पर मनोज श्रीवास्तव ने किन्हीं कवि के बोल सुनाये- पद्मश्री की लूट है, लूट सके तो लूट। अपनी तो सरकार से लिंक गयी है छूट। क्या पद्मश्री सम्मान के लिए आपका सरकार से लिंक जुड़ना जरूरी है। ब्रिटिश  सरकार ने भला कहिये- राय बहादुर का सम्मान देकर आपका क्या उद्धार कर दिया कि पद्मश्री ना मिलने से आपकी चमक में क्या कमी आ गयी?

आपके इलाके के सांसद कभी बिहार के वजीरे आला होते थे। आपके नाम का ढ़ोल बजाकर उन महोदय ने जनता को बहुत दिनों तक बंदर की तरह इस्तेमाल किया। आपके गाँव-जवार के लोगों को कुतुबपुर और गंगा के मुहाने पर लटके 12 गाँवों के विस्थापन का भय बहुत अधिक आतंकित कर रहा है। एक आदमी अपनी मौत से कितना अधिक डरता है। यहाँ 50 हजार लोगों की जिंदगी की सामूहिक जल समाधि का मामला कितना भयावह है। आप चाहेंगे तो किसी सोमवार रोज कुतुबपुर को बचाने का नाटक लेकर  जनता के दरबार में मुख्यमंत्री के समक्ष अणे मार्ग में तसरीफ रखें। संभव है एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री के लिए जनता के नाट्य सम्राट का सामना करना अमर्यादित आन लगे। थोड़ा इंतजार कर लीजिये। कुतुबपुर का संदेशा सुनकर जनता के मुख्यमंत्री भिखारी ठाकुर के दरबार में हाजिर होने आपके गाँव प्रकट हो सकते हैं। मैं कुतुबपुर से उम्मीद लेकर लौटा हूँ। जनता के मुख्यमंत्री जनता के हक में उम्मीद का आशीष  मांगने जरूर आपके दर पर खड़े होंगे। देखते रहिये, कुतुबपुर को हर हाल में बचा लिया जायेगा। आपका माटी घर गरीबों के नाट्य सम्राट के तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जायेगा। हे नाट्य सम्राट, आप गरीब मेहनतकशों की जिंदगी के हृदय सम्राट हैं। वह शासक दुनिया का सबसे सफलतम सम्राट साबित होगा जो आपकी चरणों में अपना ताज अर्पित कर दे।

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